जुल्म को सहना गुनाह है

सच को अगर सच कहना गुनाह है 
बेशक यहाँ हमारा रहना गुनाह है 
खाया हूँ ईँट दिल पर पत्थर तो मारूँगा
 लाचार होके जुल्म को सहना गुनाह है