क्या तुम मुझे मिल सकती हो........मेरी ही तनहाई में


सुनो
हमारी मोहब्बत
एकदम साधारण सी है ना

तुम्हारे होंठ
बस तुमसा ही लगा
कहाँ किसी गुलाब में वो हँसी पायी

चेहरा
आदतन
जब चाँद दिखता है
तो तलाशने लगता हूँ
तेरा अक्स
पर कहाँ कभी चाँद तुमसा हो पाया है

वजह तो नहीं
पर तलाशने लगता हूँ
फिल्मों की नायिकाओं की
रूप रेखा नैन नक्श
रैपरों और पोस्टरों में छपी
मॉडलों में
पर कहाँ कोई तुमसा दिखा

नींद में
कभी पास आते आते
सपनों का टूट जाना
या फिर
यादों में
तस्वीर जब धूँधलेपन से उभरना चाहती हो
तो आँखों का भर आना

कहाँ
कहाँ कुछ भी
जहाँ तुम हो

डायरी के पन्नों में
खट्टी मीठी यादों को
कई बार समेट लेने की
नाकाम कोशिश
झलकते तो हैं
कुरकुरे का पैकेट
क्लास रूम की कुर्सीयाँ
दोस्तों के शोरगुल
टीचर्स की डाँटें
पर तुम कहाँ

लुकाछिपी का खेल खत्म करके
क्या तुम मुझे मिल सकती हो
मेरी ही तनहाई में
कभी पुरानी पीपल तले
कभी गाँव की पगडंडी में
कभी खिलखिलाते खेतों में
कभी रिमझिम बरसात में
या फिर अकेली रात में. . . . . . . . . .