इश्क खेलेगा होली मगर दुनियाँ तुम्हें कातिल कहेगी

_
देखो कैसे अकड़ के चल रहा है
सीना फुलाये
सुनो
मुँछें तो हैं नही, फिर भी
हाथ फेरते जा रहे हो
लगातार घुरे जा रहे हो
दाँये बाँये उपर नीचे
चुँधिया रहे हो अपने चमक से
लोगों की आखें
मगर जरा रूको तो चिराग
रहने दो मोहब्बत को तनहा
हाँ, बेशक दौर के लिपट जायेगी
समा जायेगी रात तुम्हारे ही भीतर
प्रेम की दीवाली होगी
इश्क खेलेगा होली
मगर
दुनियाँ तुम्हें कातिल कहेगी