तुम नहीं रहे

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हाँ तुम नहीं रहे
हमारी जिन्दगी में
यह विचित्र फैसला भी
तुम्हारा ही था
मरे आहत होने का आलम
बेइन्तहा था
निवाला जहर दिखता था
और दुआ बेअसर
नींद ना जाने तुम्हारे साथ ही कब के चली गई
हाँ मगर
सपने अपने साथ थे
उन सपनों को भी पता था
कि अब वह
झुठी नींदों के सहारे
अस्तित्व विहिन सच का सामना कर रही है
मगर
आँखों को उनका देखना तय था
शायद आदतन
दिल तो फिर भी नासमझ है
कैसे समझाऊँ
कि
तुम नहीं रहे