मरा जा रहा है
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चाहत_
आँखे ललायित है
बस एक नजर तुम्हें देख लें
इसी चाहत में
रोज खिली खिली सी खुलती है
कानों को
तुम्हारी आवाज के सिवा
कहाँ कुछ भाया है कभी
धड़कनों को समेटे
साँसों में जोश भरकर
निकल पड़ता है
सन्नाटे की तरफ
होठ अब भी
सिर्फ
तुम्हारे प्रत्युत्तर में
खुलने को आतुर
सँजो सँजो के रख रहा है
खुबसूरत शब्दों को
बस एक दिल है
जो मरा जा रहा है
अपने ही जिद पर
अड़ा जा रहा है
चुपचाप
तनहा
अकेला
इसे चमत्कारों पे भरोसा नहीं