mohabbat beiman laga

आज फिर वो अजनबी लगा
आज फिर मैं गुमनाम सा लगा
चिठ्ठियों के पन्ने उखड़े उखड़े से
यादों की सुबह गमों की शाम सा लगा
लगा कि सांसे थम सी गई
लगा कि आँखे नम सी हुई
बेहद करीब होकर भी कोई अनजान सा लगा
और मोहब्बत
साला बेईमान सा लगा