आज फिर वो अजनबी लगा
आज फिर मैं गुमनाम सा लगा
चिठ्ठियों के पन्ने उखड़े उखड़े से
यादों की सुबह गमों की शाम सा लगा
लगा कि सांसे थम सी गई
लगा कि आँखे नम सी हुई
बेहद करीब होकर भी कोई अनजान सा लगा
और मोहब्बत
साला बेईमान सा लगा
Shambhu Sadharan