सुनो
चुप रहना
जब तलक कि
तुम्हारी खुद की पीड़ा
तुम्हें तोड़ न दे
बेशक लाठियाँ लेकर
गुमनाम से
बन जाओगे
किसी जुलूस का हिस्सा
मगर चुप रहना
जब तलक
तुम्हारी खुद की कोख
उजड़ न जाए
बेशक बयानबाजी का दौड़ है ये
मगर
लाठी के दौड़ आने तक
चुप रहना
क्योंकि
मर्द होने पे अब गर्व नहीं होता
जेल जाना आम तो नहीं
पर आम आदमी का
जेल जाना
निदान भी नहीं
एक छोटी सी फुँफकार
उथल पुथल मचा देती है
जुलूस टुकड़ों में
गिरती पड़ती नजर आती है
और
इन्सानियत
खबरों तक सिमटकर
सिसकने लगती है
अब बागी दिखना आसान है
बागी होना नामुमकिन
अब न्याय माँगना
बस इत्सिहार लगता है
जुलूस और नारे
खबरों का मसाला बन गया है
अब बदलाव संभव नहीं
चाहो तो बलिदान देकर देख लो
कफन को तरस जायेगी
तुम्हारी लाश
अब कृष्ण बहुत हैं
अर्जुन नगन्य
चलो
फिल्में देखते हैं
मनोरंजन करते हैं
अब कोई नाम नहीं
जिसका जिन्दाबाद हो
जुर्म के खिलाफ आवाज नहीं
अब
हथियार उठनी चाहिये