तु जब भी रूठ जाती है, गजल बनके सताती है।
ना कोई गम ठहरता है, ना खुशियाँ लौट आती है।
भटककर खुद ही आते हैं मेरे पग मय की बस्ती में
तेरी यादों का पहरा भी ना मुझको रोक पाती है।
सुना है तुमने अब अपना ठिकाना है बदल रक्खा,
यकीं कैसे करेगा दिल जो khat वापस ना आती है।
तेरा वो मुझपे मर मिटने सा बेकल पल को अब सोचुँ,
वो झूठा सच मगर सच में मुझे बेहद रूलाती है।
मेरी माँ है बहुत भोली वो हरपल मुझसे कहती थी,
बदन ढँक के तु बाहर जा हवाएँ शर्द आती है।
ना कोई गम ठहरता है, ना खुशियाँ लौट आती है।
भटककर खुद ही आते हैं मेरे पग मय की बस्ती में
तेरी यादों का पहरा भी ना मुझको रोक पाती है।
सुना है तुमने अब अपना ठिकाना है बदल रक्खा,
यकीं कैसे करेगा दिल जो khat वापस ना आती है।
तेरा वो मुझपे मर मिटने सा बेकल पल को अब सोचुँ,
वो झूठा सच मगर सच में मुझे बेहद रूलाती है।
मेरी माँ है बहुत भोली वो हरपल मुझसे कहती थी,
बदन ढँक के तु बाहर जा हवाएँ शर्द आती है।