KMM Home » मुक्तक » chhandmukt » muktak » poem » मोहब्बत साला बेईमान सा लगा मोहब्बत साला बेईमान सा लगा ^आज फिर वो अजनबी लगा आज फिर मैं गुमनाम सा लगाचिठ्ठियों के पन्ने उखड़े उखड़े से यादों की सुबह गमों की शाम सा लगालगा कि सांसे थम सी गईलगा कि आँखे नम सी हुई बेहद करीब होकर भी कोई अनजान सा लगाऔर मोहब्बत साला बेईमान सा लगा